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image: post-jagran-dotcom
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रो लिए बहुत, अब किसका गम रुलाता है ?
छेड़ा था जब 'उसको' -"मेरा क्या जाता है?"
---कुछ येही सोच धीरे से थे तुम निकल लिए,
"है अनजान, ऐसे लफड़े में कौन पड़े?",
जब कभी नहीं थी नियत 'उसे' बचाने की,
तो अब ऐसे क्यों उमड़ी भावनाएं?
अब क्यों उमड़ी भावनाएं जब "वो नहीं रही "?
या थी जब अस्पताल में मौत से लड़ रही ...
अब मांग करो तुम नामर्द बनाने की,
जिसने किया 'उसका' ये हाल,
पर देखो अपने गिरेबान में झांककर,
भूमिका तुम्हारी भी इसमें कम नहीं ...
पूछो खुद से- "क्या मैं भी नामर्द तो नहीं?"
जब दिखे कोई लड़का, लड़की को छेड़ रहा,
जाकर करना वो हाल,
कि डरे अगली बार, ना ऐसा कर पाए,
और तुम्हे लगे कि तुम, 'सच-मुच' किसी के काम आए ...
अपनी आत्मा को शांत करना बंद करो,
उसकी आत्मा को भगवान शान्ति स्वयं ही दे देगा ...